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सल्तनत वास्तुकला में मेहराब और गुंबद तकनीक का उपयोग सम्मिलित था। यह तुर्की आविष्कार नहीं था, बल्कि अरबी लोगों से लिया गया था जो इसे रोम से लाए थे। इस तकनीक को जानने से पहले, भारतीय पटिया और शहतीर (स्लैब और बीम) तकनीक का उपयोग करते थे जिसमें एक पत्थर को दूसरे के ऊपर रखा जाता था तथा अंतराल बंद करने के लिए इसे पाटने वाले पत्थर से ढका जाता था। चौकोर इमारत के आधार पर गोल गुंबद स्थापित करने की कला ने कमरों को स्पष्ट दृश्य प्रदान किया क्योंकि कोई और सहारा देने वाली संरचना स्थान को बाधित नहीं करती थी। उन्होंने निर्माण के लिए उत्कृष्ट गुणवत्ता वाला चूने के गारे का उपयोग किया तथा सजावट के लिए कुरान के छंदों के साथ ज्यामितीय आकृतियों को सम्मिलित किया।

उत्तर भारत और दक्कन के प्रांतीय राजवंश

स्मृतियों में मनुष्य के जीवन के सम्पूर्ण कार्यों की विवेचना की गयी है, इन्हें धर्मशास्त्र भी कहा जाता है।ये वेदों की अपेक्षा कम जटिल हैं। इनमे कहानीयों व उपदेशों का संकलन है। इनकी रचना सूत्रों के बाद हुई। मनुसमृति व याज्ञवल्क्य स्मृति सबसे प्राचीन स्मृतियाँ हैं। मनुस्मृति पर मेघतिथि, गोविन्दराज व कुल्लूकभट्ट ने टिपण्णी की है। जबकि याज्ञवल्क्य स्मृति पर विश्वरूप, विज्ञानेश्वर तथा अपरार्क ने टिपण्णी की है। ब्रिटिश शासनकाल में बंगाल के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने मनुस्मृति का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया, अंग्रेजी में इसका नाम “द जेंटू कोड” रखा गया। आरम्भ में स्मृतियाँ केवल मौखिक रूप से अग्रेषित की जाती थीं, स्मृति शब्द का अर्थ “स्मरण करने की शक्ति” होता है।

ítíhā́sasyá cá vai sa púrā́ṇasyá cá gāthā́nā́ṃ cá nā́rāśaṃsīnā́ṃ cá príyaṃ dhāmá bhávátí ya évaṃ vedá.

अकाल और बाढ़ के समय बहुत से लोगो की मृत्यु भी हो गयी थी सरकार ने लोगो की पर्याप्त सहायता नही की थी। उस समय कोई भी भारतीय ब्रिटिशो को टैक्स देने में सक्षम नही था लेकिन फिर जो भारतीय टैक्स नही देता था उसे ब्रिटिश लोग जेल में डाल देते थे।

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सिंधु घाटी की सभ्यता को व्यापार के केंद्र के नाम से भी जाना जाता है।

दिल्ली की सल्तनत पर पांच वंशों ने शासन किया-

बरनी ने उच्च वर्ग का मार्गदर्शन करने हेतु एवं फीरोज के समक्ष आदर्श उपस्थित करने हेतु इस ग्रंथ की रचना की। इस पुस्तक में शरीयत के अनुसार सरकार के कानूनी पक्ष का वर्णन है। इसमें मुस्लिम शासकों के लिए आदर्श राजनीतिक संहिता का वर्णन है। बरनी ने महमूद गजनवी को आदर्श मुस्लिम शासक माना है तथा मुसलमान सुल्तानों को उसका अनुकरण करने के लिए कहा है। बरनी कट्टर मुसलमान था, अतः उसने काफिरों का विनाश करने वाले को आदर्श मुस्लिम शासक माना है। उसने आदर्श शासन के लिए कुशल शासन प्रबंध भी आवश्यक बताया है। यदि बरनी के आदर्श शासक सम्बन्धी विचारों में से उसकी धर्मान्धता को निकाल दिया जाये, तो यह शासन प्रबंध में आदर्श website सिद्ध हो सकते हैं।

जियाउद्दीन बरनी रचित तारीख-ए  फिरोजशाही द्वारा बलबन के राज्याभिषेक से फिरोज तुगलक के शासनकाल के छठवें वर्ष तक के इतिहास की जानकारी मिलती है।

दानपत्रों के विवरणों से राज्य की सुदृढ़ आर्थिक स्थिति का ज्ञान होता है। नालंदा-ताम्रपत्र के ‘सम्यग् बहुधृत बहुदधिभिर्व्यन्जनैर्युक्तमन्नम्’ से भोजन के उच्चस्तर का पता चलता है। व्यापार क्षेत्र में निगमों तथा श्रेणियों का उल्लेख अभिलेखों में मिलता है। कुमारगुप्त के मंदसोर अभिलेख में पट्टवाय श्रेणी द्वारा सूर्यमंदिर के निर्माण तथा पुनरुद्धार का वर्णन है। उनके द्वारा बुने रेशम विश्वविख्यात थे। निगमों द्वारा बैंक का कार्य करने का भी उल्लेख मिलता है।

प्रस्तुत पुस्तक ‘प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत का इतिहास’ सिविल सेवा एवं राज्य सेवा आयोग की प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा के लिए लिखी गई है। पुस्तक में प्रागैतिहासिक काल से प्रारंभ कर हड़प्पा सभ्यता; वैदिक काल; महाजनपद युग; मौर्य काल; गुप्त काल; राजपूतकाल; दिल्ली सल्तनत इत्यादि इतिहास के प्रमुख बिंदुओं पर विस्तृत व सिविल सेवा के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार सामग्री प्रस्तुत की गई है।

याह्या-बिन-अहमद-सरहिन्दी ने अपने ग्रंथ तारीख-ए-मुबारकशाही में तैमूर के आक्रमण के पश्चात सैय्यद वंश के शासनकाल का वर्णन किया है।

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